मर्म अहसास

जीवन में कुछ पल ऐसे आते हैं जो ऐसी टीस दे जाते हैं कि उसके मर्म को वही व्यक्ति समझ सकता है जिसने उसका सामना किया हो। इन्सान एक संवेदनशील प्राणी है। लेकिन परिस्तिथियों के हाथों मजबूर होकर कई बार उसे अपनी भावनाओं को दबाना पड़ता है। बचपन से ही गहरी दोस्ती के बावजूद दो दोस्तों की जिन्दगी में ऐसा पल आया जो अनजाने में एक मार्मिक अहसास दे गया।

समीर एक बेहद संवेदनशील एवं एकान्त प्रिय व्यक्ति है। वह स्वयं में व्यस्त रहने वाला, रचनात्मक और गम्भीर स्वभाव का है। उसके ज्यादा दोस्त नहीं हैं, लेकिन एक खास दोस्त है केशव जिसका  व्यक्तित्व बड़ा रहस्मयी है। वह समझदार, रिश्तों को गहराई से समझने वाला, गलत बात पर बड़ों को भी डांटने वाला और लम्हों को खूबसूरती से जीने वाला व्यक्ति है, तो वहीं दूसरी ओर वह छोटी सी बात पर धैर्य और शब्दों से नियन्त्रण खो देने वाला, गुस्से में सबको अनदेखा करने वाला, जिद्दी और स्वयं के बनाये नियमों पर चलने वाला व्यक्ति है। उसकी इस विरोधाभासी प्रवृत्ति के कारण समीर भी कभी उसे समझ नहीं पाया। लेकिन वह केशव को बहुत पसंद करता है और उसे एक बेहद सकारात्मक और जिन्दादिल इन्सान मानता है। केशव बचपन में ही अपने परिवार के साथ कोलकात्ता चला गया था और अब वही रहता है। 

फरवरी का महीना था। कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी और पिछले दो दिनों की बारिश ने इसमें और भी इजाफा कर दिया था। समीर सुबह-सुबह चाय की चुस्की के साथ रजाई की गर्माहट का आनंद ले रहा था। उसने बगल में रखा फोन उठाया और रोज की तरह समाचार तथा अन्य सोशल साइट को देखना शुरू कर दिया। जल्द ही उसने अपने एक मित्र केशव का संदेश अपने मैसेज बॉक्स में देखा। उसने लिखा था कि वह एक पारिवारिक समारोह में भाग लेने के लिये गाँव आ रहा है और उसकी फ्लाइट आज बारह बजे दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुँच जायेगी। समीर को ऑनलाइन देखकर केशव उससे बात करने लगा। केशव ने कहा अगर हो सके तो एयरपोर्ट आ जाओ और हम बात करते हुए गाँव तक साथ चलेंगे। समीर को उसका साथ बहुत पसंद था और वह भी हमेशा उससे मिलने के लिये तत्पर रहता था किन्तु अचानक से उसका आना और बारिश में उसकी फ्लाइट के समय तक पहुँचना उसे असम्भव लगा। समीर ने कहा अगर तुम एक दिन पहले भी बता देते तो वह हर हाल में एयरपोर्ट पहुँचता। केशव ने बताया की कल रात ही अचानक कार्यक्रम बना और उसे अकेले ही आना पड़ रहा है। समीर को केशव का बिन बताये आना और उससे न मिल पाना बहुत अखर रहा था। 

समीर के घर से केशव के गाँव की दूरी लगभग तीन घन्टे की थी और दोनों के घर से एयरपोर्ट तक पहुचने में भी इतना ही समय लगता था। चूंकि उनके परिवारों के बीच आपसी तालमेल अच्छा नहीं था जिसकी वजह से उन्हें उन दोनों का मिलना जुलना पसंद नहीं था। समीर की एक परेशानी यह भी थी कि उसे घर वालों को बिना बताये किसी बहाने से बारिश में निकलना था, जिससे वह बहुत असमंजस में था। आखिर उसने उदास मन से एयरपोर्ट पहुँचने में अपनी असमर्थता जताई। केशव समीर की स्थिति को समझते हुए मान गया लेकिन कहा कि वो उनके समारोह में आ जाये ताकि वहाँ मिल सकें।लेकिन पारिवारिक क्लेश की सम्भावना के मद्धेनजर उसने समारोह में जाने से भी मना कर दिया। केशव को बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन किसी तरह उसने नियन्त्रण किया। समीर उसकी नाराजगी को भांपते हुए बोला कि कोलकाता के लिये वापसी में वो उसे एयरपोर्ट तक छोडने आ जाएगा। केशव एक बार के लिये मान गया और कहा जैसा भी होगा वो उसे बता देगा।

केशव बारह बजे एयरपोर्ट पहुँच गया और वहाँ से अपने घर के लिये किराये पर कैब ली। वह समीर के न आ पाने से मायूस था। उधर समीर भी दुखी था कि केशव के बिना सूचना अचानक आने से वह उससे नहीं मिल पाया। इतनी दूर से अपने जिगरी दोस्त के आने और उस से न मिल पाने की टीस उसके मन में बैठती जा रही थी। अगले दिन उसने केशव से बात करने की कोशिश की, लेकिन केशव व्यस्तता के कारण उसको जवाब नहीं दे पाया। केशव उसकी मजबूरी समझ रहा था लेकिन अन्दर ही अन्दर सोच भी रहा था कि समीर चाहता तो आ सकता था, इसलिए ना चाहते हुए भी वह उससे कहीं न कहीं नाराज था और शायद इसलिए भी वह समीर से बात नहीं करना चाहता था।

समीर केशव की बहुत इज़्ज़त करता था और उसके अलावा उसका कोई और खास दोस्त भी नहीं था। केशव ने कई बार समीर को नकारात्मकता से बाहर निकाला था और समीर उसे प्रेरणा की तरह मानता था। वह जब भी किसी उलझन में होता तो केशव सब भूलकर उसे समझाता और उसे एक नई उर्ज़ा देता। समीर उसके जाने के समय उससे मिलने का इन्तज़ार करने लगा।

केशव अपने पारिवारिक समारोह में व्यस्त था लेकिन समीर अपने खास दोस्त के इतना करीब आने के बावजूद उससे न मिल पाने के कारण आत्मबोध से ग्रसित हो गया था। जब केशव का कोई संदेश नहीं आया तो समीर ने उसे ऐयरपोर्ट तक छोड़ने और मिलने के लिये पूछा, लेकिन केशव ने मिलने से मना कर दिया और वह बिना मिले वापिस कोलकात्ता चला गया। 

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