एक शुरुआत ऐसे भी

 "मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं ऐ जिंदगी इधर आ तुझे हम जिएंगे", राज ने जैसे ही ये बात शायराना अंदाज में कही, जिया प्रभावित हुए बिना न रह सकी और बोली, "क्या बात हैं राज, तुम तो बहुत अच्छी शायरी कर लेते हो"। इस पर राज ने मजाकिया अंदाज़ में कहा "हाँ शायरी तो और भी अच्छी कर लेता अगर कोई इंस्पायर करने वाला हो, तुम बन जाओ मेरी इंस्पिरेशन"। राज की यह बात सुनकर जिया के दिल में जैसे बिजली सी कौंध गई।

राज और जिया पहली बार वर्षों पहले एक पारिवारिक समारोह में मिले थे। उनके परिवारों के नजदीकी सम्बन्ध होने की वजह से उनकी यदा कदा बातचीत तो हो जाया करती थी लेकिन कभी मिलना जुलना नहीं हो पाता था। दोनों ही अपने इरादों के पक्के और खुद के बनाये उसूलों पर चलने वाले इंसान थे। उन्हें कभी आपस में नजदीक से जानने का मौका तो नहीं मिला था लेकिन जितना भी वे एक दूसरे के बारे में जानते थे उससे प्रभावित जरूर थे। एक लम्बे अंतराल के बाद आज जब बात करने का मौका मिला तो वे एक दूसरे के बारे में कुछ और भी जानना चाहते थे।

राज की बात सुनकर जिया के मन में एक तरंग सी उठी थी। इंस्पिरेशन शब्द ने उसके दिल दिमाग़ को झकझोर सा दिया था। वह सोच रही थी की क्या वह भी किसी की प्रेरणा बन सकती है, और वो भी उस शख्स की जिससे वह स्वयं प्रभावित थी। उसने तुरन्त राज से कहा,"क्या हम दोस्त बन सकते हैं?" जिया के अचानक दोस्ती के प्रस्ताव पर राज गंभीर हो गया। राज के लिए जिया की दोस्ती के बड़े मायने थे। वह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि कभी जिया स्वयं उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाएगी। चमकती आँखों और प्रफुल्लित मन से राज ने कहा, "दोस्त बनने जैसी कोई बात नहीं है, दोस्त तो हम पहले से ही हैं।" उसने यह बात बोलकर स्थिति को व स्वयं को सामान्य दिखाने की कोशिश की लेकिन उसके अंदर ढ़ोल नगाड़े बज रहे थे और उसे अपने दिल को काबू में रखना मुश्किल हो रहा था।

उधर जिया भी जैसे एक पुरानी मुराद पूरी होने की ख़ुशी में फूली नहीं समा रही थी। वह खुद भी नहीं समझ पा रही थी कि वह राज को इतना पसंद क्यों करती थी। जब भी वह किसी से राज के बारे में सुनती थी तो हमेशा उसे अच्छा ही सुनने को मिलता था। राज का व्यक्तित्व देखने में प्रभावी था जिसे जिया बहुत पसन्द करती थी। जिया भी देखने में सुन्दर थी और उसका चुलबुलापन उसे अन्य लड़कियों से अलग करता था।

हल्के फुल्के अंदाज में शुरू हुई बातचीत से दोनों को जैसे सारे जहाँ की खुशियाँ मिल गई थी। वे एक दूसरे का साथ पाकर बहुत खुश थे। उन्होंने एक दूसरे को पूरा वक़्त दिया। मुलाक़ातों, शिकवे, शिकायतों व लड़ाईयों के दौर भी चले लेकिन कभी प्रेम कम नहीं हुआ। एक बार जब राज किसी बात को लेकर बहुत नाराज था तो जिया ने कहा, "अब जब हम मिले हैं तो मैं तुम्हें वह हर ख़ुशी देना चाहती हूँ जो मैं दे सकती हूँ। मैं तुमसे जिंदगी भर के लिए यह रिश्ता बनाकर रखना चाहती हूँ।" राज भी सच्चे मन से जिया के साथ रिश्ता निभाना चाहता था। एक बार जिया ने राज से पूछ लिया, "अच्छा राज ये बताओ, तुम मुझसे क्या चाहते हो", इस पर राज ने बस यही कहा, "सिर्फ तुम्हारा साथ"।

जिया साथ देने की बात को भली भाँती समझती थी। उसे जब भी मौका मिलता राज से बात करती। अगर राज किसी कारण निराश होता तो उसे समझाती और कोशिश करती कि वह हमेशा खुश रहे। वह राज के बारे में कुछ भी बुरा नहीं सुनना चाहती थी। वह उसे बेहतरीन रूप में देखना चाहती थी। राज अगर जिद्द करता तो जिया उसे डांट भी देती थी और कई बार तो रूठ कर बात तक नहीं करती। इन्ही कारणों से राज उसकी दिल से इज़्ज़त करता था और उसके सामने कभी झूठ नहीं बोलता था। वह वो सब करने की कोशिश  करता जिससे जिया को ख़ुशी मिले। लेकिन जिया को हमेशा राज से शिकायत ही रहती थी। 

राज जिया को एक बेहतरीन दोस्त और प्रेरणा मानता था और हर वक़्त उसे आस पास महसूस करता था। जिया को भी राज के रूप में एक सच्चा दोस्त, ख़ुशी और जीवन जीने की नई उम्मीद मिली थी।

लेकिन वक़्त के आगे सब मजबूर हैं। एक समय आता है जब नादानियों का स्थान जिम्मेदारियां ले लेती हैं। वे दोनों दिल और आत्मा से आज भी साथ हैं लेकिन तन और स्थान से बेहद दूर। शायद यही प्रकृति की नियति है।

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