ख़ुश रहने के लिए हम जीवन में एक उद्देश्य निर्धारित करते हैं और कड़ी मेहनत से उसे पा लेते हैं, या उसके आस पास पहुँच जाते हैं। जीवन भर के लिए ये हमारी ख़ुशी का कारण बन जाता है। हमें जीने का मकसद मिल जाता है और हम हमेशा ख़ुश रहना सीख जाते हैं। ये हमारी योजनाबद्ध तरीके से प्राप्त की गई स्थाई ख़ुशी होती है।
इस ख़ुशी से उत्साहित होकर हम एक और ख़ुशी को जीवन में जोड़ने की कोशिश करने लगते हैं, और कुछ प्रयासों से अपनी सुविधा के अनुसार उसे पा भी लेते है। इस अन्य ख़ुशी की जरुरत तो नहीं होती लेकिन डबल डोज़ के चक़्कर में हम इस अस्थाई ख़ुशी को अपने जीवन में जगह दे देते हैं। तिस पर विडंबना ये कि हम अपनी स्थाई ख़ुशी को छोड़ इस अस्थाई ख़ुशी पर निर्भर भी हो जाते हैं।
लेकिन प्रकृति की अपनी नियति है, अस्थाई अस्थाई होता है। बिना किसी निर्धारित उद्देश्य के पाई गई यह ख़ुशी धीरे धीरे गायब होने लगती है। तब तक हम इस पर इतने निर्भर हो चुके होते हैं कि इस ख़ुशी के दूर जाने को हम पचा नहीं पाते और दुःखी रहने लगते हैं। ये दुख हमारी स्थाई ख़ुशी को भी भुला देता है।
अतः एक ख़ुश जिंदगी को एक ख़ुशी ही दुखी बना देती है। जीवन के सत्य को जानने के लिए हमें स्थाई व अस्थाई ख़ुशी के भेद को समझना बहुत जरूरी है।
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