बच्चे थे तब पापा हमें, साईकिल चलाना सिखाते थे
चुटकियों में हमको, गणित के सवाल समझाते थे
बनकर सच्चे दोस्त वो, जीवन के सबक सिखाते थे।
बड़े हुए हम ज़ब, नादानियों में उलझ गए
वो बाप रूप में आए, तो लगा बड़ा अजीब था
हम दोस्त थे तो ठीक था ।।
बुनके स्वेटर माँ, घर अपना चलाती थी
ऊन के ताने बानों से हमें,
जीवन की उलझने सुलझाना सीखाती थी
बनकर अच्छी दोस्त वो, प्रेम का पाठ पढ़ाती थी।
दुनिया की रीत ज़ब, हम पर जिम्मेदारियां आ गई
यूं ही कभी कभी नाराज सी माँ की आँखों को,
पढ़ना बड़ा मुश्किल था
हम दोस्त थे तो ठीक था ।।
अचानक एक आहट से, प्रेरणा का उदगार हुआ
रौशनी सी चमक उठी, खुशियों का अम्बार लगा
खूब थे वो लम्हें, वो वक़्त भी क्या खूब था
वो प्रेरणा सा, बनकर दोस्त बारिकियां समझाता था।
सुख दुख हालात जज़्बात में, ज़ब रिश्ता उससे जुड़ गया
चल दिया छोड़कर साथ, जो सबसे अधिक करीब था
हम दोस्त थे तो ठीक था ।।
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