यह देखकर हैरानी होती है कि कुछ अति बुद्धिमान लोग आज भी इस धारणा से इत्तेफाक रखते हैं कि 'कबूतर के आँख बंद कर लेने से बिल्ली चली जाती है'। लेकिन बिल्ली के जाने के बाद जो नुक्सान होता है, उसको जानने के लिए कबूतर जिन्दा नहीं बचता, और ना ही वो बुद्धिमान जीव इसका अंदाजा लगा पाते हैं।
आँख खोलने के बाद जो स्वर्ग या नर्क सामने होता है, वे उसमें फिर से जीना शुरु कर देते हैं। वे ये नहीं जानते कि सब कुछ बदल चुका है, और न ही ये जानने की कोशिश करते हैं कि आँख बंद करने के दौरान क्या हुआ था।
यदि व्यक्ति अपनी नैतिकता आधारित जिम्मेदारियों से आँख बंद करके ये सोचता है कि कुछ फर्क नहीं पड़ता, तो शायद वह बहुत बड़ी गलती कर रहा होता है। प्रकृति को ब्रह्माण्ड में संतुलन बनाये रखने के लिए सबका हिसाब करना होता है। कभी यह दयालु है तो कभी घिनौने रूप पर अपना हंटर चलाती है और हाल कबूतर से भी बदतर कर देती है।
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