कितना तुझको मानूं अपना

कितना तुझको मानूं अपना

कितना तुझमें है मेरा 


पढ़ के दुनिया घड़ के खुद को

एक अंजाने का रूप उकेरा

मिल गया मुझको वैसा ही ज़ब 

सामने आया तेरा चेहरा 

कपोल रूप को पाकर तुझ में 

हैरत में यूं हाल था मेरा 

कितना तुझको मानूं अपना

कितना तुझमें है मेरा


लम्हें जिए यादें जोड़ी

गहरी दिल पर छाप भी छोड़ी

मुझको मेरा मिल गया था

पर क्या तुझको भी सब मिला था तेरा

दूर जाते तेरे साये ने

इस आशंका में मुझको घेरा

कितना तुझको मानूं अपना

कितना तुझमें है मेरा 


सबको अपना कह लेते हो 

बिन मेरे अब रह लेते हो

मैं शायद वो नहीं था तेरा 

जो तेरी कल्पना में तूने उकेरा 

एक बात बता दो बस इतनी सी 

मैं अब खुद को रखूँ कितना तेरा 

कितना तुझको मानूं अपना

कितना तुझमें है मेरा 

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